हिस्वा ठेला ग्लेशियर
क्रमश हिस्वा ..............….💐💐💐💐💐
पहाड़ो में रात की कड़ाके की ठंड के बाद सुबह की गुनगुनी धूप सेकने का अलग ही आंनद होता है। पर आज सब को हिस्वा मंदिर के लिए श्रमदान करना था तो सुबह ही सभी साथी जल्दी उठकर अपने -अपने कामों में जुट चुके थे। कुछ लोग खाना बनाने में लगे थे तो बाकी सभी मंदिर और धर्मशाला निर्माण में लग चुके थे। यहाँ इतनी दूर हिस्वा देवता का एक बड़े पत्थर पर एक छोटा सा मंदिर है। लोक किवदंतियों के अनुसार प्राचीन समय में पैनखंडा के समीप एक तिमुण्डिया वीर ने मानव जाति को तहस नहस कर दिया था तब माँ भगवती ने इस वीर के तीनों सिरों को काट दिया था और तीनों सिर अलग -अलग दिशाओं में गिर गए एक सिर जोशीमठ, एक सिर सैलङ्ग और एक सिर उर्गम घाटी में गिरा। सिर अलग होने के बाद भी यह वीर जीवित हो उठा और उर्गम घाटी में नरसंहार करने लगा तब इस घाटी के भूमि के रक्षक भूमियाल देवता जिनको घंटाकर्ण के नाम से भी जाना जाता है, इस वीर के सिर को बाध्य यंत्र दमाउँ के अंदर बन्द कर अपने मंदिर में ले आये परन्तु मंदिर प्रांगण में पहुँचते ही यह वीर बाहर आ गया तब घंटाकर्ण जी द्वारा इस वीर को उर्गम घाटी वासियों द्वारा पूजा किये जाने, तथा गाँव से कोशों दूर हिस्वा बुग्याल में स्थापित किये जाने का वचन दिया गया तभी से उर्गम घाटी के लोगों के साथ -साथ घंटाकर्ण जी के पस्वा (अवतारी पुरुष) यहाँ पूजा करने आते है। यह स्थान बड़ा ही अद्भुद है। मंदिर के बायीं और से बहने वाली नदीअधिकांशतया ग्लेशियर से अटा हुआ होता है। यहाँ से एक रास्ता खीरों पार करते हुऐ नीलकंठ से बद्रीनाथ तक पहुँचा जा सकता है । व गिन्नी ग्लेशियर भी यही से हो कर पहुँचा जा सकता है।
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